मूलनिवास स्वाभिमान महारैली :- भू-कानून और मूल निवास पर मिलेगा उत्तराखंडियो को न्याय या मिलेगा एक और कमेटी का झुनझुना .. ?

By: A S

On: Friday, December 22, 2023 10:02 PM

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मूल निवास 1950 और उत्तराखंड माँगे भू-कानून को लेकर एक बार फिर देहरादून में मूलनिवास स्वाभिमान महारैली का आयोजन किया जा रहा है। 24 दिसंबर को परेड ग्राउंड में ये रैली होगी जो शहीद स्मारक तक जाएगी लेकिन एक बार फिर वही सवाल उठता है कि आख़िर क्यों मूल निवास की माँग अभी तक पूरी नहीं हो पाई है? क्यों सरकार की तरफ़ से इस माँग को लेकर कुछ भी नहीं किया जा रहा है?

 

 

 

 

 

22 सालों से हो रहे कुछ महत्वपूर्ण बदलाओं पर ध्यान देने की कोशिश करते हैं
• 2000 मे 64 लाख जनसंख्या का राज्य आज पलायन के बाद भी 1 करोड 35 लाख का कैसे?
• डेमोग्रेफिक बदलाव का शिकार तराई के इलाके।
• उत्तराखंड सैनिक बहुल राज्य है, फिर भी अनावश्यक राष्ट्रवाद।
• पहाड़ की कुदशा जानने के बाद भी डबल इंजन विकास और अगला दशक उत्तराखंड का जैसे बेकार के नारे।
• बेरोजगारी होते हुए भी बाहरियों को नौकरी।
• पलायन के बाद भी राज्य मे सर्वाधिक 30% वोटर्स की बढोतरी।
• भू खनन माफिया बने सत्ता विपक्ष के गुर्गे।
• कभी खेती से समृद्ध पहाड़ी आज मुफ्त राशन के भरोसे।
लोग ये सब जानते हुय भी कि वो धीरे धीरे बोली भाषा, संस्कृति, पहचान, गांव, पहाड़ और राज्य निर्माण की वास्तविक अवधारणाओं से दूर किये जा रहे हैं। फिर भी मूल मुद्दों पर जागरुक नहीं।

 

 

 

यह किसी एक दल, संगठन का आंदोलन न रहकर एक जन आंदोलन का रूप ले रहा है । इस आंदोलन में जनता की सक्रिय भागीदारी के लिए तमाम संगठन अपील कर रहे हैं। मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति से लेकर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी और अन्य संगठन से जुड़े लोग महारैली में जनता की भागीदारी के लिए निरंतर आह्वान कर रहे हैं।

 

https://www.instagram.com/reel/C0_di0KLZXT/?utm_source=ig_web_copy_link&igsh=MzRlODBiNWFlZA==

यहां तक कि उत्तराखंडी संस्कृति के ध्वजवाहक नरेंद्र सिंह नेगी ने सोशल मीडिया पर एक अपील जारी की है। जनता के नाम उनका संदेश और गीत खूब प्रसारित (वायरल) किया जा रहा है। जिसमें वह कह रहे हैं कि मूल निवासी की बाध्यता को समाप्त किए जाने यहां के मूल निवासियों के समक्ष पहचान का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मूल निवास की जगह लेने वाले स्थाई निवास प्रमाण पत्र के बल पर बाहरी राज्यों के 40 लाख से अधिक लोक राज्य के स्थाई निवासी बन गए हैं।

 

क्यों जरूरी है मूल निवास 1950

■ हमारी जमीनें बाहरी व्यक्ति नहीं खरीद पायेगा।

■ सरकारी और प्राइवेट नौकरियों पर पहला अधिकार मूल निवासियों का होगा।

■ विश्विद्यालय और कॉलेजों में मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य कोर्सों की पढ़ाई के लिए मूल निवासियों को प्राथमिकता मिलेगी।

■ सभी तरह के संसाधनों पर मूल निवासियों का पहला हक होगा।

■ फर्जी स्थाई निवास बनाने वालों की पहचान होगी।

■ उत्तराखंड की संस्कृति और अस्मिता बची रहेगी।

■ मूल निवासी अल्पसंख्यक होने से बच जायेंगे।

■ स्कूल-कॉलेज या सरकारी नौकरी में क्षेत्रीयता आधारित आरक्षणों का लाभ मिलेगा।

■ छात्रवृत्ति योजना, शैक्षणिक संस्थानों में फीस माफ या फीस में छूट के लिए लाभ मिलेगा।

■ बाहरी लोग मूल निवासियों का उत्पीड़न नहीं कर पाएंगे।

■ उत्तराखंड में गुंडे-बदमाश नहीं पनप पाएंगे और यहां के मूल निवासी खुली हवा में सांस ले पायेंगे।


A S

S Singh is the founder and chief editor of Samachar Samiksha, a trusted platform delivering the latest news and trending stories with accuracy, clarity, and an engaging style. With a passion for credible journalism and a knack for simplifying complex topics, Subodh ensures every article resonates with readers while maintaining factual integrity. Through Samachar Samiksha, he strives to keep audiences informed, inspired, and connected to what matters most.
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